1945 के वसंत में हेलमुट नामक 11 वर्षीय जर्मन लड़का बिस्तर में लेटे कुछ सोच रहा था। तभी उसे अपने माता-पिता की दबी दबी सी आवाजें सुनाई दी। समुद्र कान लगा कर उनकी बातचीत सुनने की कोशिश करने लगा। वे गंभीर स्वर में किसी मुद्दे पर बहस कर रहे थे। हेलमुट के पिता एक जाने-माने चिकित्सक थे। उस वक्त वे अपनी पत्नी से इस बारे में बात कर रहे थे कि क्या उन्हें पूरे परिवार को खत्म कर देना चाहिए या अकेले आत्महत्या कर लेनी चाहिए।
उन्हें अपना भविष्य सुरक्षित दिखाई नहीं दे रहा था। वे घबराहट भरे स्वर में कह रहे थे, “अब मित्र राष्ट्र भी हमारे साथ वैसा ही बर्ताव करेंगे जैसा हमने अपाहिजों और यहूदियों के साथ किया था। ‘ अगले दिन वे हेलमुट को लेकर बाग में घूमने गए। यह आखिरी मौका था जब हेलमुट अपने पिता के साथ बाग में गया। दोनों ने बच्चों के पुराने गीत गाए और खूब सारा वक्त खेलते-कूदते बिताया। कुछ समय बाद हेलमुट के पिता ने अपने दफ़्तर में खुद को गोली मार ली। हेलमुट की यादों में वह क्षण अभी भी जिंदा है जब उसके पिता की खून में सनी वर्दी को घर के अलाव में ही जला दिया गया था। हेलमुट ने जो कुछ सुना था और जो कुछ हुआ उससे उसके दिलोदिमाग पर इतना गहरा सदमा पहुँचा कि अगले नौ साल तक वह घर में एक कौर भी नहीं खा पाया।
उसे यही डर सताता रहा कि कहीं उसकी माँ उसे भी जहर न दे दे। हेलमुट को शायद समझ में न आया हो लेकिन हकीकत यह है कि उसके पिता ‘नात्सी’ थे। वे एडॉल्फ हिटलर के कट्टर समर्थक थे। आप में से कई बच्चे नात्सियों और उनके नेता हिटलर के बारे में जानते होंगे। आपको शायद पता होगा कि हिटलर जर्मनी को दुनिया का सबसे ताकतवर देश बनाने को कटिबद्ध था। वह पूरे यूरोप को जीत लेना चाहता था। आपने यह भी सुना होगा कि उसने यहूदियों को मरवाया था। लेकिन नात्सीवाद सिर्फ इन इक्का-दुक्का घटनाओं का नाम नहीं है। यह दुनिया और राजनीति के बारे में एक संपूर्ण व्यवस्था, विचारों को एक पूरी संरचना का नाम है। आइए समझने की कोशिश करें कि नात्सीवाद का मतलब क्या था। इस सिलसिले में सबसे पहले हम यह देखेंगे कि लट के पिता ने आत्महत्या क्यों की थी वे किस चीज से डरे थे।
मई 1945 में जर्मनों ने मित्र राष्ट्रों के सामने समर्पण कर दिया। हिटलर कहा कि अब उसकी लड़ाई का क्या हल होने वाला है। इसलिए, हिटलर और उसके प्रचार मंत्री के एक कर में पूरे परिवार के साथ अप्रैल में हो आत्महत्या कर ली थी। युद्ध खत्म होने के बाद न्यूरेबर्ग में एक अंतर्राष्ट्रीय अदालत स्थापित की इस अदालत को शांति के विरुद्ध किए गए अपराध मानवता के खिलाफ किए आगरा और पूरा के लिए पर मुकदमा चलाने का जिम्मा सौंपा गया था। युद्ध के दौरान जर्मनी के व्यवहार, खासतौर से इंसानियत के खिलाफ़ किए गए उसके अपराधों की वजह से कई गंभीर नैतिक सवाल खड़े हुए और उसके कृत्यों की दुनिया भर में निंदा की गई।
ये कृत्य क्या थे? दूसरे विश्वयुद्ध के साए में जर्मनी ने जनसंहार शुरू कर दिया जिसके तहत यूरोप में रहने वाले कुछ खास नस्ल के लोगों को सामूहिक रूप से मारा जाने लगा। इस युद्ध में मारे गए लोगों में 60 लाख यहूदी, 2 लाख जिप्सी और 10 लाख पोलैंड के नागरिक थे। साथ ही मानसिक व शारीरिक रूप से अपंग घोषित किए गए 70,000 जर्मन नागरिक भी मार डाले गए। इनके अलावा न जाने कितने ही राजनीतिक विरोधियों को भी मौत की नींद सुला दिया गया। इतनी बड़ी तादाद में लोगों को मारने के लिए औषवित्स जैसे कत्लखाने बनाए गए जहाँ जहरीली गैस से हजारों लोगों को एक साथ मौत के घाट उतार दिया जाता था।
न्यूरेम्बर्ग अदालत ने केवल 11 मुख्य नात्सियों को ही मौत की सज़ा दी। बाकी आरोपियों में से बहुतों को उम्र कैद की सजा सुनाई गई सजा तो मिली लेकिन नात्सियों को जो सता दी गई वह उनकी बर्बरता और उनके जुल्मों के मुकाबले बहुत छोटी थी। असल में, मित्र राष्ट्र पराजित जर्मनी पर इस बार वैसा कठोर दंड नहीं थोपना चाहते थे जिस तरह का दंड पहले विश्वयुद्ध के बाद जर्मनी पर थोपा गया था।