अत्यंत प्राचीन अतीत यानी बीते हुए काल को, जिसके लिए न तो कोई पुस्तक । और न ही कोई लिखित दस्तावेज़ उपलब्ध है, उसे प्राक् इतिहास (Pre-history) कहा जाता है। पुस्तकें या दस्तावेज़ उपलब्ध होते भी कैसे? उस समय न तो कागज़ था, न ही कोई भाषा या लिखित शब्दा प्राक् इतिहास को हम अक्सर प्रागैतिहासिक काल (Pre-historic times) कहते हैं। ऐसी परिस्थिति में मनुष्य कैसे रहता होगा, यह विश्वास करना तब तक बहुत कठिन बना रहा, जब तक कि विद्वानों ने उन स्थानों को खोजना शुरू नहीं कर दिया, जहाँ प्रागैतिहासिक काल के मनुष्य रहा करते थे। ऐसे स्थलों की खुदाई से पुराने औज़ारों, मिट्टी के बर्तनों, आवास स्थलों और उस काल के मनुष्यों तथा जानवरों की हड्डियों के अवशेष मिले हैं। इन चीज़ों से प्राप्त जानकारियों को और तत्कालीन मनुष्यों द्वारा गुफाओं की दीवारों पर खींची गई आकृतियों को एक साथ जोड़कर, विद्वानों ने एक अच्छा-खासा विवरण तैयार किया है। इससे यह जाना जा सकता है कि उस समय क्या होता था और प्रागैतिहासिक काल में मनुष्य किस प्रकार रहा करते थे। जब मनुष्यों की खाना, पानी, कपड़ा तथा आवास संबंधी बुनियादी ज़रूरतें पूरी होने लगीं तो वे अपने विचारों तथा मनोभावों को अभिव्यक्त करने का भी प्रयास करने लगे। इसके लिए उन्होंने गुफाओं की दीवारों को आधार बनाकर चित्र और रेखाचित्र बनाने शुरू कर दिए और उनके माध्यम से अपने आपको यानी अपने भावों तथा विचारों को अभिव्यक्त करने लगे। प्रागैतिहासिक काल के मानव ने इन चित्रों को क्यों खींचा? शायद उस समय के मनुष्यों ने अपने घरों को अधिक रंगीन और सुंदर बनाने के लिए ये भित्ति चित्र बनाए अथवा यह भी हो सकता है कि उन्होंने अपने रोजमर्रा के जीवन का दृश्य अभिलेख रखने के लिए ये चित्र खींचे, जैसे कि आजकल हम में से कुछ लोग अपनी डायरी लिखते हैं। मानव के आरंभिक विकास के इस प्रागैतिहासिक काल को आमतौर पर पुरापाषाण युग (Paleolithic Age) यानी पुराना पत्थर काल कहा जाता है। प्रागैतिहासिक चित्रकारियाँ दुनिया के अनेक भागों में पाई गई हैं। हम वास्तव में यह नहीं जानते कि पूर्व-पुरापाषाण युग (Lower Paleolithic) के मनुष्यों ने क्या कभी कोई कला वस्तु बनाई थी। लेकिन हमें पता चलता है कि उत्तर पुरापाषाण काल (Upper Paleolithic Time) तक आते-आते मनुष्य के कलात्मक क्रियाकलापों में भारी वृद्धि हो गई थी। दुनियाभर में इस काल की ऐसी अनेक गुफाएं पाई गई हैं जिनकी दीवारें उन जानवरों के सुंदर चित्रों से भरी पड़ी हैं, जिनका उन गुफाओं में रहने वाले लोग शिकार किया करते थे। वे लोग मनुष्यों और उनकी गतिविधियों के दृश्य चित्रित करते थे और वृत्त, वर्ग, आयत जैसी अनेक ज्यामितीय आकृतियाँ और प्रतीक भी बनाते थे। भारत में अब तक जो प्राचीनतम चित्र मिले हैं, वे उत्तर पुरापाषाण काल (Upper Paleolithic Time) के हैं। यह जानना दिलचस्प होगा कि भारत में शैल चित्रों की सर्वप्रथम खोज वर्ष 1867-68 में पुराविद् आर्कियोल्ड कार्लाइल ने स्पेन में हुई आल्तामीरा की खोज से भी 12 वर्ष पहले की थी। कॉकबर्न, एंडरसन, मित्र और घोष पहले अनुसंधानकर्ता थे जिन्होंने भारतीय उपमहाद्वीप में ऐसे अनेक स्थल खोजे थे। शैलचित्रों के अवशेष वर्तमान मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और बिहार के कई जिलों में स्थित गुफाओं की दीवारों पर पाए गए हैं। उत्तराखण्ड में कुमाऊँ की पहाड़ियों में भी कुछ शैल-चित्र मिले हैं। अल्मोड़ा बारेछिना मार्ग पर अल्मोड़ा से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर सुयाल नदी के किनारे स्थित लखुडियार में पाए गए शैलाश्रयों में प्रागैतिहासिक काल के अनेक चित्र मिले हैं। लखुडियार का शाब्दिक अर्थ है एक लाख गुफाएँ। यहाँ पाए जाने वाले चित्रों को तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है मानव चित्र, पशु चित्र और ज्यामितीय आकृतियाँ। ये चित्र सफेद, काले और लाल रंगों के हैं। इनमें मनुष्यों को छड़ी जैसे रूप में दिखाया गया है।